जून की चिलचिलाती गर्मी में पैसिफिक मॉल के बाहर खड़ी सुमेधा मन ही मन सोच रही थी कि काश उसने ड्राइव करना सीख लिया होता तो आज उसे भरी दोपहरी में बाहर खड़े होकर यूं ओला कैब का इंतज़ार नहीं करना पड़ता।
पौं पौं... गाड़ी के हॉर्न की आवाज़ लगातार सुमेधा के कानों से टकरा रही थी मगर सुमेधा थी कि टस से मस होने को भी तैयार नहीं थी।
ओ मैडम!एक्सक्यूज मी,सुनाई नहीं देता क्या?
गाड़ी सुमेधा के सामने से गुजरती हुई थोड़ी दूर पर जाकर रुक जाती है और उसमें से एक युवक उतरकर सुमेधा की ओर बढ़ता है।
संजय!
सुमेधा! तुम,तुम यहाँ कैसे?
मैं तो पिछले 4 सालों से दिल्ली में ही हूँ मगर तुम! तुम यहाँ कैसे? अपनी बताओ तुम तो लखनऊ में थे ना!!
हाँ भाई लखनऊ में ही था तो क्या बंदा लखनऊ से दिल्ली शिफ्ट नहीं हो सकता? क्या कुछ गुनाह कर दिया?एक्चुअली मेरी कंपनी लखनऊ से दिल्ली ट्रांसफर हो गई है।
ओहो!
क्या हुआ?
अरे, ये कैब वाले नें राइड कैंसिल कर दी!हद्द होती है!!इतनी गर्मी में मैं पिछले आधे घंटे से वेट कर रही हूँ और ये!!अभी कंप्लेंट डालती हूँ मैं इसकी!
छोड़ो ना यार क्यों किसी गरीब का......
चलो मैं तुम्हें घर छोड़ देता हूँ। बताओ कहाँ जाना है?
हाँ छोड़ने की तो तुम्हारी पुरानी आदत है!
यार,सुमेधा...प्लीज़!!
तुमने कार का ऐसी स्लो क्यों कर रखा है?
हाँ वो मुझे एलर्जी है न!!
हाँ मुझे पता है!
फिर पूछा क्यों?
बस 'ऐसे ही'!
तुम्हारी ये 'ऐसे ही' वाली आदत बदली नहीं ना?
मेरा तो कुछ भी नहीं बदला!
बस...कहते कहते सुमेधा ने अपने आप को रोक लिया!
अच्छा अब बताओ कहाँ रहती हो तुम?
क्या फ़र्क पड़ता है?
मतलब???
मतलब कि मुझे अभी कहीं और भी जाना है तो तुम चाहो तो मुझे वहाँ ड्रॉप कर सकते हो!
लो मैंने ये लोकेशन सेट कर दी है अपने फोन में,कहते हुए सुमेधा नें अपना फोन संजय की ओर बढ़ा दिया।फोन सुमेधा के हाथों से लेते वक्त संजय की अंगुलियाँ सुमेधा की अंगुलियों से छू गयीं!इस अनायास ही हुए स्पर्श के कारण संजय के पूरे बदन में एक सिहरन के दौड़ने के साथ ही साथ उसके मस्तिष्क में इस बाबत कई वर्षों पहले कहे गए सुमेधा के शब्द भी गूंजनें लगे!!
संजय,उस इंसान के साथ कल की पूरी रात गुजारने पर भी मुझे ये सिहरन एक बार भी महसूस न हुई जो अभी भूल से ही सही मगर तुम्हारी इन अंगुलियों की छुअन से महसूस हुई है, उफ़्फ़!!
मगर सुमेधा की गर्म साँसें अपने चेहरे पर महसूस करने के बावजूद उन्हें न महसूस करने के लिए आज बाध्य था संजय!!
और संजय कैसे हो?
हम्म!!मैं..हाँ ठीक हूँ मैं!अचानक सुमेधा के पूछे हुए इस प्रश्न से संजय की तंद्रा भंग हुई और वो अब अपनें अतीत से वर्तमान में लौट चुका था।
तुम कैसी हो?
तुम्हें कैसी लग रही हूँ?
क्या तुम आज भी हर सवाल का जवाब सवाल में ही देती हो?
इसपर खिलखिला दी सुमेधा!!
संजय भी सुमेधा के साथ खिलखिलाकर हंस पड़ा!!
दोनों एक दूसरे को देखकर बस हंसते ही जा रहे थे और वो दोनों तब तक हंसते रहे जब तक कि उनकी वो हंसी उन दोनों की आँखों से अश्क बनकर बहने न लगी!!
न जाने ये सुमेधा और संजय के खूबसूरत सफ़र की पुनरावृत्ति थी या उनकी नासमझी मगर इसे जानने की हसरत होने पर हमें इनके सफ़र का साथी बनना ज़रूरी होगा जो हम हैं,हैं न?तो फ़िर मिलते हैं इनके सफ़र के अगले पड़ाव पर👍 क्रमशः
निशा शर्मा...